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Showing posts from June, 2017

पिता!

गुज़र चुका जो  काफिला , क्यूँ धूल उस पर की रोज़ साफ करते हो। याद है तुम्हें, जब कंधे पे बैठे थे तुम उनके, तब कहा था, बेटा तुम खामखां ही डरते हो। बे झिझक तब तुमने अपनी बांहे फैलाई थीं, हवा से बातें कर रही, तब  तुम्हारी  ऊंचाई थी। तो क्या हुआ आज कद तुम्हारा बढ़ गया, ऊचाई का एहसास तो उन्हीं ने दिलाया था। कुछ दूर तुम भी साथ चल लो उनके, कंधा उनका भी थक कर आज झुक आया है। माना कि अब हवा से गुफ्तगू ना करा सकेंगे वो, पर तूफान से लड़ना उन्हीं ने तुमको सिखाया है। हो सकता है, अब तुम्हें सहारे की जरूरत नहीं, ज़िद्दी फर्माईशे को अब आने की खाईश नहीं| पर मत भूलना, क़दमों पर चलना उन्हीं ने सिखाया है, खड़े रह  सको  तुम, इस काबिल बनाया है। आज कदम उनके हिलें तो संभाल लेना तुम, उन्होंने पूरा जीवन इस भरोसे पे टिकाया है।