काश ज़िन्दगी मेरी किताब होती ।

काश ज़िन्दगी मेरी किताब होती,
जो लिख देता वैसी ही आबाद होती,
छोटी ही सही कोई तो पढ़ता,
कुछ पन्ने पलटकर, कुछ पर थम जाता,
उम्मीदों की स्याही से कलम मेरी आजाद होती,
ज़िन्दगी काश मेरी एक किताब होती।

ज़ेहन में आता जो बस यूं ही लिख देता,
परवाह न नज़रियों की होती,
ना गिले शिकवों का अंदाज़ा होता।
पढ़ कर मेरी कहानी,
कहीं कोई तो मुस्कुराता।
कुछ लम्हों में सिमटते अफसाने होते,
उन्हीं अफसानों मे कहानी मेरी बयां होती,
काश ज़िन्दगी मेरी किताब होती।

गुमां होता मुझे हर पन्ने की फ़ज़्ल पर,
कि हर पन्ना एक दौर का आइना होता।
बेखौफ से कुछ अरमानों सी
बेधड़क सी कुछ बेबाक सी,
होती मेरी कहानी भी ऐसी,
जैसे बाग़ी कोई रूह जवां होती
काश ज़िन्दगी मेरी एक खुली किताब होती।

Comments

Popular posts from this blog

Oh the crazy little world !!

The place called 'HOME'....

The Rain that Falls For Earth!